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नेता, कर्मचारी और व्यापारी आमने-सामने:जालंधर सेंट्रल विधानसभा सीट पर चौकोना और दिलचस्प होगा इस बार मुकाबला

जालंधर सेंट्रल सीट पर पहले कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा है। लेकिन इस बार इस सीट पर चौकोना मुकाबला होगा। एक तरफ दो नेता हैं जिन्होंने राजनीति ही की जबकि दूसरी तरफ कपड़ा व्यापारी और कर्मचारी नेता है। दोनों राजनीति के बड़े अखाड़े में पहली बार उतरे हैं। जालंधर सेंट्रल सीट पर इस बार मुकाबला बहुत ही रोचक होने वाला है। पहले यहां अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में लड़ती थी लेकिन इस बार दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनावी दंगल में उतरे हुए हैं।

जालंधर सेंट्रल सीट पर मुकाबला चौकोना होने पर इस बार सभी के सामने अपनी-अपनी तरह की कई नई चुनौतियां। इनसे पार पाकर ही उम्मीदवार चुनाव जीत पाएंगे। भाजपा को पहले इस सीट पर अकाली दल की सपोर्ट रहती थी लेकिन अब अकाली दल खुद मुकाबिल होने के कारण भाजपा में तोड़फोड़ करने में लगा हुआ है। अकाली दल सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी में भी घुसपैठ कर रहा है। कांग्रेस में आपसी कलह कलेश ही खत्म नहीं हो पा रहा है। एक तो मनाते हैं तो दूसरा रुठ जाता है।

टिकट की जंग के बाद सीट की लड़ाई

जालंधर सेंट्रल से कांग्रेस के प्रत्याशी राजिंदर बेरी निवर्तमान विधायक हैं। पहले दौर में टिकट की जंग तो वह जीत गए हैं लेकिन अब उनके सामने अपने वजूद को कायम रखने की चुनौती है। टिकट के लिए सेंट्रल हल्के से शहर के मेयर जगदीश राज राजा ने भी जोर लगा रखा था कि इस बार पार्टी दांव बेरी पर नहीं बल्कि उन पर लगाए। लेकिन पार्टी ने करवाए गए आंतरिक सर्वे के आधार फिर से चुनावी दंगल में राजिंदर बेरी को उतार दिया। टिकट की पहली जंग तो वह जीत गए लेकिन इसके बाद टिकट न मिलने पर मेयर साहब नाराज हो गए। अब विधायक महोदय उनकी मान मनौवल में लगे हुए हैं। लेकिन बेरी के आगे मेयर ही सिर्फ एक अड़चन नहीं हैं बल्कि इसके अलावा भी पार्टी में उनके बहुत सारे विरोधी हैं। इनसे पार पाएंगे तभी वह अपना उद्धार कर पाएंगे।

भाजपा में तोड़फोड़ ने बढ़ाई परेशानी

पेशे से वकील छह बार विधानसभा चुनाव लड़ कर तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके मनोरंजन कालिया के समक्ष इस बार नई किस्म की चुनौतियां हैं। पहले उन्हें गठबंधन का साथ भी मिल जाता था लेकिन अबकी बार वह अकेले हैं। ऊपर से जिस पार्टी अकाली दल के साथ उनका गठबंधन था वह उनके घर में सेंधमारी कर रही है। उनके सेंट्रल टाउन स्थित घर के बगल से उनके सालों पुराने वफादारों को तोड़ कर ले जा रही है। ऐसा नहीं है कि उनके क्षेत्र में पार्टी का कैडर नहीं है, इलाके में जनसंघ के समय़ का कैडर है लेकिन अब वह छिटकना शुरू हो गया है। पिछली बार हार की भी यही वजह रही थी। पिछले साढ़े चाल साल में जो टूट फूट की रिपेअर होनी चाहिए थी वह नहीं हो पाई है।

कर्मचारी नेता की राजनीति

नगर निगम में कर्मचारियों के नेता रहे चंदन ग्रेवाल अब विधानसभा का रास्ता तय करने के लिए चुनावी दंगल में उतरे हैं। अकाली दल ने सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र से कर्मचारियों में उनकी गहरी पैठ और एक समुदाय विशेष में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए उनपर दांव खेला है। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे कर्मचारी नेता चंदन ग्रेवाल के पास प्लस पाइंट यह है कि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जो भी होगा उससे वह कुछ न कुछ हासिल ही करेंगे। अकाली नेता मनोरंजन कालिया और राजिंदर बेरी की राजनीति से भली भांति परिचित हैं। दरअसल, जिस निगम में दोनों कभी पार्षद रहे उसी निगम में चंदन ग्रेवाल की कर्मचारियों पर सरदारी थी। निगम से निकले तीनों नेताओं में इस बार कांटे की टक्कर होगी।

आम आदमी पार्टी के आगे आड़े आ रही कैडर की कमी

आम आदमी पार्टी ने इस बार जालंधर सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र से कपड़ा व्यापारी रमन अरोड़ा पर दांव खेला है। रमन अरोड़ा के समक्ष सबसे बड़ चुनौती पार्टी के कैडर वोट को लेकर है। सेंट्रल हलके में पार्टी का कैडर वोट बहुत बड़ा नहीं है। दूसरा सेंट्रल हलके में टिकटों के वितरण के बाद बगावत अपने पूरे चरम पर है। पिछले दिनों नाराज चल रहा एक धड़ा जो कि पहले अकाली दल से ही छिटक आया था ने टिकट न मिलने पर दोबारा बिक्रम सिंह मजीठिया के नेतृत्व में घर वापसी कर ली। इसके अलावा इन दिनों रमन अरोड़ा विवादों में भी खूब घिरे हुए हैं। पिछले दिनों जीएसटी भवन में व्यापारियों ने धरना लगाया था। वहां पर वह महिलाओं को लेकर ऐसा बयान दे बैठे कि अब हर कोई उनकी घेराबंदी करने में लगा हुआ है। हालांकि वह टिकट मिलने के बाद अपने इलाके में प्रचार बहुत ही मजबूर तरीके से कर रहे हैं। कोविड गाइडलाइन का ध्यान रखते हुए चुनाव आयोग की हिदायतों का पालन करते हुए वह अपने कुछ समर्थकों के साथ घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। सेंट्रल हलके में शायद वह अकेले ही ऐसे प्रत्याशी हैं जो डोर टू टूर प्रचार कर रहे हैं।

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