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UP चुनाव के पहले भागवत का बयान चर्चा में:जानिए क्यों संघ प्रमुख का एक बयान पलटकर रख देता है पूरा चुनाव, कई दफा BJP खुद ही उनके बयान से असहज हो गई

‘कैसे मतांतरण होता है? अपने देश के लड़के, लड़कियां दूसरे मतों में कैसे चले जाते हैं? छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण। विवाह करने के लिए। करने वाले गलत हैं, वो अलग बात है, लेकिन हमारे बच्चे हम नहीं तैयार करते। हमें इसका संस्कार घर में देना पड़ेगा।‘

यह बयान राष्ट्रय स्वयंसेवक संघ, यानी RSS, प्रमुख मोहन भागवत का है। उन्होंने ये नसीहत उत्तराखंड के हल्द्वानी में RSS कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों को संबोधित करने के दौरान दी।

भागवत के इस बयान को लव जिहाद से जोड़कर देखा जा रहा है। और लव जिहाद को लेकर UP में बड़ी चर्चा है। वहां अगले साल चुनाव हैं और लव जिहाद पर कानून भी बनाया जा चुका है।

BJP लव जिहाद के बहाने हिंदुओं को साथ जोड़े रखने की कोशिश में है। ऐसे में संघ प्रमुख का ताजा बयान योगी सरकार को फायदा पहुंचाने वाला ही है। जैसी संघ की सोच है, वैसी ही सोच सरकार की भी नजर आती है।

अक्सर ऐसा देखा गया है कि, जब भी कहीं चुनाव होने वाले होते हैं, उसके पहले संघ प्रमुख का कोई न कोई बयान जरूर सामने आता है जो देशभर में सुर्खियों बटोरता है और इसका पॉलिटिकल इम्पैक्ट भी होता ही है।

दूसरी ओर, ऐसा नहीं है कि संघ प्रमुख के बयानों ने हमेशा BJP को फायदा ही पहुंचाया हो, बल्कि कई बार यही बयान BJP के लिए परेशानी भी खड़ी कर चुके हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार है।

तब पूरा चुनाव BJP के हाथ में नजर आ रहा था, लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कह दी और पूरा चुनाव ही पलट गया। लालू यादव ने मुद्दा पकड़ लिया और इसे इतना भुनाया कि, सत्ता के मुहाने तक पहुंच गए।

तो क्या संघ प्रमुख जानबूझकर चुनाव के पहले ऐसे बयान देते हैं, जो सुर्खियां बनें और जिनका पॉलिटिकल इम्पैक्ट हो? इसके जवाब में ‘संघम शरणम गच्छामि’ किताब के लेखक और RSS को लंबे समय तक कवर करने वाले सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी कहते हैं, RSS प्रमुख हमेशा प्रवास पर रहते हैं।

वे अलग-अलग सभाओं में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हैं। जब चुनाव का टाइम होता है तो उनके बयानों को चुनाव के रेफरेंस में ले लिया जाता है, लेकिन ये सच नहीं है कि वे हमेशा चुनाव को ध्यान में रखकर ही बयान देते हों।

यदि ऐसा होता तो वो बिहार में चुनाव के पहले आरक्षण की समीक्षा की बात नहीं कहते, क्योंकि उससे तो BJP को नुकसान होना तय था, जो हुआ भी।

त्रिवेदी के मुताबिक, साल 2018 से भागवत हिंदू और मुस्लिमों को एक एजेंडा पर लाने वाले बयान दे रहे हैं। मुस्लिमों को एकजुट करने वाला उनका बयान साहसिक है, लेकिन दिक्कत ये है कि संघ में उसकी स्वीकार्यता नहीं है। कई बार BJP भी भागवत के बयानों के बाद असहज होती रही है।

शायद अभी उन्होंने जो बयान दिया है, वो लव जिहाद के रेफरेंस में ही दिया है। इसको लेकर एक बड़ी डिबेट BJP और संघ में चल रही है। इस बयान को चुनाव के नजरिए से भी देखा जा सकता है, क्योंकि UP में लव जिहाद पर योगी सरकार सक्रिय है और वहां चुनाव भी हैं। योगी सरकार वहां हिंदुत्व ग्रुप को बचाकर काम करना चाहती है। इसका पॉलिटिकल और इलेक्टोरल दोनों ही इम्पैक्ट होने की संभावना है।

‘मिशन बंगाल : ए सेफ्रॉन एक्सपेरिमेंट’ के लेखक स्निग्धेंदु भट्टाचार्य के मुताबिक, RSS अपना एजेंडा पुश करता रहता है। वे अपनी आइडियोलॉजी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। ये भी सच है कि संघ प्रमुख के जब बयान आते हैं तो उनका पॉलिटिकल इम्पैक्ट होता है, इसलिए बहुत बार चुनावी रेफरेंस में भी बयान दिए जाते हैं।

वहीं हिंदी राज्यों में धर्म हमेशा बड़ा मुद्दा बनता है। इसके आगे गवर्नेंस और लॉ एंड ऑर्डर कहीं पीछे छूट जाते हैं, इसलिए उनके मौजूदा बयान का भी इम्पैक्ट तो होगा ही। हालांकि ऐसा नहीं होता कि संघ प्रमुख हमेशा सिर्फ चुनावी रेफरेंस में ही बयान देते हों। कई बार उनके बयान खुद ही चुनावी मुद्दा बन जाते हैं।

कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ का कहना है कि, ‘संघ भारतीय जनता पार्टी की होल्डिंग कंपनी है और होल्डिंग कंपनी के मोहन भागवत चेयरमैन हैं। एक बात बहुत स्पष्ट है कि बहुत जल्द 5 राज्यों में चुनावों की अधिसूचना जारी होने वाली है।

मेरे होल्डिंग कंपनी के चेयरमैन से पांच सवाल हैं। क्या उन्होंने कभी कोरोना की हेंडलिंग कैसे हुई, इसे लेकर सरकार से सवाल पूछा। क्या गंगा में तैरती लाशों पर बयान दिया। 45 साल की बेरोजगारी पर बयान दिया। हाथरस की बेटी को रातों रात जलाए जाने पर बयान दिया। गृह राज्यमंत्री के बेटे द्वारा किसानों को कुचलने पर बयान दिया।

वे सिर्फ डिवाइड, डिस्ट्रैक्ट और डिस्टॉर्ट की नीति पर काम करते हैं। अभी उन्होंने जो बयान दिया है, वो लोगों को गुमराह करने की कोशिश है।’

अब पढ़िए संघ प्रमुख के वो 10 बयान, जो सुर्खियां बन गए

जुलाई 2021 : 7 राज्यों (UP, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर, गुजरात, हिमाचल प्रदेश) में चुनाव।

‘ भारतीयों का DNA एक है और मुसलमानों को डर के इस चक्र में नहीं फंसना चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है। जो लोग मुसलमानों से देश छोड़ने को कहते हैं, वे खुद को हिंदू नहीं कह सकते।‘

(राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिया बयान)

‘ये सिद्ध हो चुका है कि हम पिछले 40 हजार साल से एक पूर्वजों के वंशज हैं। सभी भारतीयों का DNA एक है, भले ही वे किसी भी धर्म के क्यों न हों। इसमें हिंदू-मुस्लिम के एकजुट होने जैसी कोई बात नहीं है। सभी लोग पहले से ही साथ हैं।’

(वे गाजियाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार की किताब ‘वैचारिक समन्वय-एक व्यावहारिक पहल’ की रिलीज के मौके पर बोल रहे थे।)

2019 का बयान : लोकसभा के साथ ही आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा में चुनाव थे।

‘RSS अपने रवैये पर अडिग है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए कानून पारित किया जाए। उन्होंने कहा, मेरा इस मुद्दे पर स्टैंड बिल्कुल स्पष्ट है। अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर ही बनेगा। भगवान राम में हमारी आस्था है। वो समय बदलने में समय नहीं लेते।‘

2018 का बयान : कनार्टक, मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम में चुनाव थे।

‘हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है, हिंदू राष्ट्र है, इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। जिस दिन ये कहा जाएगा कि यहां मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन वो हिंदुत्व नहीं रहेगा।‘

‘हिंदुओं को संप्रदाय में बांटा जा रहा है, जो किसी भी देश और समाज के लिए घातक हो सकता है’

2017 का बयान : UP, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव थे।

‘ कौन हैं हम सब लोग। इतनी भाषाओं को…इतने पंथ-सम्प्रदायों को.. इतने जाति उपजातियों को..खानपान रीति-रिवाज राजसात के तरीकों को..प्रांतों को जोड़ने वाला सूत्र क्या है वो सूत्र है हिंदू। हिंदुत्व। हिंदुवाद नहीं हिंदुत्व।‘

‘मुसलमानों की इबादत का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन उनकी राष्ट्रीयता हिंदू है। भारत वर्ष के समाज को दुनिया हिंदू कहती है। सभी भारतीय हिंदू हैं और हम सब एक हैं।‘

2015 का बयान : बिहार, दिल्ली में चुनाव थे।

‘लोकतंत्र में हमारी कुछ आकांक्षाएं रहती हैं इसलिए कुछ समूह बन जाते हैं,लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि ये आकाक्षाएं दूसरों की कीमत पर न पूरी हों। सिविल सोसायटी के प्रतिनिधित्व वाली कमेटी ये तय करे कि आरक्षण किसको मिले, कब तक मिले।’

‘24 फरवरी 2015 को कहा था, मदर टेरेसा जैसी सेवा यहां नहीं है। ये सेवा बहुत अच्छी होती होगी। वहां लेकिन पीछे एक उद्देश्य रहता था जो सेवा जिसकी होती है वो कृतज्ञता से ईसाई बन जाए।‘

अगस्त 2014 का बयान : महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, सिक्किम, हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, जम्मू-कश्मीर में चुनाव थे।

‘अगर इंग्लैंड में रहने वाल अंग्रेज, जर्मनी में रहने वाले जर्मन और अमेरिका में रहने वाले अमेरिकी हैं तो फिर हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिंदू क्यों नहीं हो सकते।‘

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