
मेरे पास एक लंगूर था। मंगल सिंह नाम था उसका। वो सरकारी ऑफिसों से बंदर भगाता था, मुझे पैसे मिलते थे।
11 साल पहले सरकार ने बंदर भगाने के लिए लंगूर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। लगा जैसे मेरा काम छिन गया। मैं देखता था कि मेरा लंगूर कैसी आवाज निकालता है। मैं उसी की तरह आवाज निकालकर बंदर भगाने लगा। अफसरों ने मेरा हुनर देखा और मुझे यही काम दे दिया।’ये गुल खान हैं। उम्र, 42 साल। 23 साल से दिल्ली में बंदर भगाने का काम कर रहे हैं। G20 समिट के दौरान भी उन्हें यही जिम्मेदारी मिली। समिट के वेन्यू प्रगति मैदान के आसपास इंडिया गेट, लाल किला, कर्तव्य पथ और कनॉट प्लेस एरिया में काफी बंदर हैं। ये बंदर झुंड में घूमते दिख जाते हैं।
बंदर भगाने वाले कलंदर, इनके काम को सरकार ने एसेंशियल सर्विस माना
दैनिक भास्कर गुल खान और उनकी तरह बंदर भगाने वाले कुछ लोगों तक पहुंचा, उनसे ट्रेनिंग, काम और कमाई पर बात की। ये लोग खुद को कलंदर कहते हैं। कलंदर यानी बंदर-भालुओं का खेल दिखाने वाले।
G20 समिट के दौरान इनकी ड्यूटी जंतर-मंतर, संसद भवन, इंडिया गेट, लाल किला, चाणक्य पुरी, कनॉट प्लेस और सरदार पटेल मार्ग के आसपास थी। सभी बड़े मंत्रालय, सरकारी विभाग और VVIPs के घर इन्हीं इलाकों में हैं। एरिया के हिसाब से एक से तीन कलंदर तैनात किए गए।ड्यूटी का टाइम सुबह 8 से रात 8 बजे तक तय था। बंदर भगाने के इस काम को सरकार ने ‘एसेंशियल सर्विस’ माना।
चाणक्यपुरी और सरदार पटेल मार्ग के पास लंगूर के बड़े कटआउट भी लगाए गए।
NDMC के वाइस प्रेसिडेंट सतीश उपाध्याय के मुताबिक, बंदर लंगूरों के कटआउट के पास नहीं आएंगे, क्योंकि वे उन्हें देखकर डर जाते हैं। बंदरों को हटाया नहीं जा सकता। उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता या मारा नहीं जा सकता। इसलिए ये तरीका अपनाया।’हालांकि, बंदर भगाने वाले 45 साल के अल्ताफ खान इसे गलत बताते हैं। वे कहते हैं कि बंदर कागज के पुतलों से नहीं डरते। G20 समिट के दौरान अल्ताफ खान की ड्यूटी PMO पर लगी थी।
बंदर का तमाशा दिखाते-दिखाते विदेश मंत्रालय में काम मिला
गुल खान बताते हैं, ‘साल 2000 की बात है। मेरी उम्र 18 साल थी। एक दिन पुलिसवालों को बंदर का खेल दिखा रहा था। तभी मुझे सब इंस्पेक्टर राजेंद्र कुमार मिले। उन्होंने पूछा कि दिल्ली से बंदरों को कैसे भगा सकते हैं? मैंने जवाब दिया- बंदर लंगूर से डरते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि लंगूर ले आ। मैं तुझे किसी अफसर के ऑफिस में काम दिलवा दूंगा। मेरे पास लंगूर नहीं था, क्योंकि हम तो बंदर का नाच दिखाते थे।’मेरे समुदाय के लोग सपेरों, मछली पालने वालों और मधुमक्खी का छत्ता निकालने वालों के कॉन्टैक्ट में रहते हैं। लंगूर की डिमांड आई, तो मैं पटेल नगर गया। वहां एक योगी बाबा रहते थे। बाबाजी के पास मंगल सिंह नाम का लंगूर था। उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने इसे बच्चे की तरह पाला है। यही मेरा परिवार है। बाबाजी बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके लिए लंगूर पालना मुश्किल था। उन्होंने वो लंगूर मुझे दे दिया।’
अगले दिन मैं लंगूर लेकर SI राजेंद्र कुमार के पास गया। वे मुझे विदेश मंत्रालय ले गए। मुझे जॉइंट सेक्रेटरी और केयरटेकर से मिलवाया। दोनों ने मुझे डेमो दिखाने के लिए कहा। मंत्रालय की बिल्डिंग पर बंदरों का झुंड बैठा था। मैंने लंगूर की मदद से उन्हें भगा दिया। ये देखकर दोनों अफसरों ने मुझे काम दे दिया। 2000 के जनवरी महीने से मैं विदेश मंत्रालय में काम कर रहा हूं। इस एक मौके ने मेरे परिवार का जीवन बदल दिया। मेरे भाई फिरोज, अल्ताफ और अमजद भी मेरे साथ बंदर भगाने लगे।’
लंगूर पर बैन लगा, तो उसकी तरह आवाज निकालना सीखा…
2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने बंदरों को भगाने के लिए लंगूर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। लंगूर रखने, खरीदने-बेचने या किराए पर देने पर तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
गुल बताते हैं, ’नोटिस आने के बाद हमें भविष्य खतरे में दिखने लगा। मेरे परिवार के सभी लोग इसी पेशे में थे। अफसरों ने हमसे कहा कि अपने लंगूर दे दो, ताकि उन्हें चिड़ियाघर में रख सकें। हमने उन्हें लंगूर देने की बजाय जंगल में छोड़ दिए। मैंने 12 साल लंगूर पाला था।’लंगूरों पर बैन के बाद विदेश मंत्रालय में मुझे बुलाया गया। अफसरों ने कहा कि बंदरों से बहुत परेशानी हो रही है। मैंने कहा कि मैं बिना लंगूर के भी बंदरों को भगा सकता हूं। किसी ने मेरी बात पर भरोसा नहीं किया। मंत्रालय का स्टाफ ही डंडे-लाठियों से बंदर भगाने लगा था। मेरा काम बंद हो गया।’
4 महीने बाद मंत्रालय से केयरटेकर का फोन आया। उन्होंने कहा कि बंदर भाग नहीं रहे हैं। आकर दिखाओ, कैसे बंदर भगाओगे। मैं गया, चेहरे पर रुमाल बांधा और लंगूर की आवाज निकाली। मुझे देखकर बंदर भाग गए। अफसरों ने मुझे फिर काम पर रख लिया।’कुछ दिन बाद PMO के एक कमरे में बंदर घुस गया। मुझे वहां बुलाया गया। लंगूर की आवाज निकालकर मैंने बंदर को बाहर निकाला। मेरा हुनर देखकर म्यूनिसिपल काउंसिल ने PMO, साउथ ब्लॉक, नॉर्थ ब्लॉक, इंडिया गेट पर भी मेरे जैसे लोगों को बुलाने के लिए कहा। मैं अपने भाइयों को ले गया। तब जसवंत सिंह वित्त मंत्री थे। मेरा भाई अमजद उनके यहां काम करने लगा। ऐसे अलग- अलग विभागों और मंत्रालयों में डिमांड बढ़ने लगी।’
पूरा परिवार बंदर भगाने में लगा, 15 से 20 हजार रुपए महीना सैलरी
गुल खान का पूरा परिवार बंदर भगाने में एक्सपर्ट है। उनके परिवार के 250 से 300 लोग चंडीगढ़, लखनऊ, गाजियाबाद और दिल्ली में यही काम करते हैं। दिल्ली में NDMC उनके साथ एक साल का कॉन्ट्रैक्ट करता है, जो हर साल रिन्यू हो जाता है।
दिल्ली में ही करीब 100 लोग ये काम करते हैं। ये लोग अलग-अलग मंत्रालयों और सेंट्रल दिल्ली में तैनात रहते हैं। बदले में 15 से 20 हजार रुपए महीना सैलरी मिलती है।
दिल्ली में बंदर बड़ा मुद्दा, संसद में मंत्री ने बयान दिया, AAP ने घोषणा पत्र में जिक्र किया
सेंट्रल दिल्ली में लाल मुंह वाले बंदर बहुत हैं। ये खाना या कोई सामान छीन लेते हैं। घरों में तोड़फोड़ करते हैं। 2007 में दिल्ली के डिप्टी मेयर रहे 52 साल के एस.एस. बाजवा बंदरों को छड़ी से भगाते वक्त बालकनी से गिर गए थे। इससे उनकी मौत हो गई थी। 2017 में दिल्ली नगर निगम चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने घोषणा पत्र में कहा था कि यदि पार्टी जीती तो बंदरों से हो रही समस्या खत्म कर देगी।
लंगूर पालने या खरीदने-बेचने पर लगी रोक के बाद न्यू दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल ने बंदर भगाने वाले 30 लोगों के कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिए थे। तब गुल खान और उनके साथियों को हर महीने 10 हजार रुपए मिलते थे।
2012 में म्यूनिसिपल काउंसिल ने बंदर पकड़ने वालों को रखा था। उनके पास एक जालनुमा रस्सी होती थी, जिसे बंदरों पर डालकर उन्हें पकड़ लिया जाता था। पकड़े गए बंदरों को जंगल में छोड़ देते थे। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट के विरोध के बाद 6 महीने बाद ही सब बंद करना पड़ा।
2014 में आवास और शहरी विकास मंत्री रहे वेंकैया नायडू ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि सरकारी भवनों के आसपास 40 पेशेवर लोग तैनात किए गए हैं। ये लोग लंगूर की आवाज निकालकर बंदर भगाते हैं। यदि ये तरीका काम नहीं करता है, तो अधिकारी रबर की गोलियां इस्तेमाल करेंगे।