Himachal Pardeshअमृतसरकपूरथलाचंडीगढ़जम्मूजालंधरनई दिल्लीपंजाबफिरोजपुरराष्ट्रीयलुधियानाहरियाणाहिमाचलहोशियारपुर

53 साल बाद पुरी की रथ यात्रा 2 दिन चली:गुंडिचा मंदिर में आज रात रथों पर ही रहेंगे भगवान; कल मंदिर में प्रवेश करेंगे

1200 साल पुरानी रथयात्रा:865 पेड़ों की लकड़ियां, 150 से ज्यादा कारीगर और दो महीनों में तैयार होते हैं रथ

53 साल बाद पुरी की रथ यात्रा दो दिनों चली। आज यात्रा का दूसरा दिन था। भगवान बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ के रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचे। अब रथों पर ही भगवान की पूजा आरती होगी। इसके बाद राजभोग लगेगा। 9 जुलाई को भगवान मंदिर में प्रवेश करेंगे।अगले 7 दिनों तक तीनों रथ यहीं रहेंगे। 11 जुलाई को हेरापंचमी मनेगी। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी भगवान से मिलने आती हैं। 15 जुलाई, सोमवार को तीनों भगवान अपने रथों में बैठकर मंदिर लौटेंगे। भगवान के मंदिर लौटने वाली यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।कल (7 जुलाई) यात्रा का पहला दिन था। शाम 5 बजे के बाद शुरू हुई रथ यात्रा सूर्यास्त के साथ ही रोक दी गई थी, भगवान जगन्नाथ का रथ सिर्फ 5 मीटर ही आगे बढ़ा था।

इस साल रथ यात्रा दो दिन क्यों?

जगन्नाथ मंदिर के पंचांगकर्ता डॉ. ज्योति प्रसाद के मुताबिक, हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा एक दिन की होती है, लेकिन इस बार दो दिन की है। इससे पहले 1971 में यह यात्रा दो दिन की थी। तिथियां घटने की वजह से ऐसा हुआ।

दरअसल, हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद वे बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक बीमार रहते हैं, इस दौरान वे दर्शन नहीं देते।

16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से रथ यात्रा शुरू होती है।इस साल तिथियां घटने से आषाढ़ कृष्ण पक्ष में 15 नहीं, 13 ही दिन थे। इस वजह से भगवान के ठीक होने का 16वां दिन द्वितीया पर था। इसी तिथि पर रथ यात्रा भी निकाली जाती है।

7 जुलाई को भगवान के ठीक होने के बाद की पूजन विधियां दिनभर चलीं। इसी दिन रथ यात्रा निकलना जरूरी था। इस वजह से 7 जुलाई की शाम को ही रथ यात्रा शुरू की गई। यात्रा सूर्यास्त तक ही निकाली जाती है। इसलिए रविवार को रथ सिर्फ 5 मीटर ही खींचा गया था।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page