
भारत में दशकों से दशहरे पर रावण, मेघनाद व कुंभकरण के पुतले फूंके जाने का रिवाज है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है। लेकिन समय के साथ-साथ इसमें परिवर्तन भी आने लगा। बात पंजाब की करें तो बीते पांच साल में ऐसे कई अवसर आए, जब लोगों ने हक और विरोध जताने के लिए दशहरे पर आतंकवाद, नशे व मांगे पूरी न होने पर नेताओं के पुतले फूंके।
2020 में कृषि कानूनों के रोष में किसानों ने प्रधानमंत्री के साथ बजनेसमैन अंबानी व अडानी के पुतले जलाए गए थे। इस बार धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए हुए संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने दशहरे पर रोष स्वरूप नेताओं का पुतला न फूंकने का फैसला किया है।
एसकेएम के अनुसार उसने देशभर के अपने सभी घटकों को स्थानीय परिस्थिति के अनुसार नेताओं के पुतले जलाने के लिए 15 और 16 दोनों दिनों की इजाजत दी है। भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि सभी किसान यूनियन दशहरे के एक दिन बाद ही विरोध स्वरूप नेताओं और मंत्रियों का पुतला फूंकेंगे, लेकिन कुछ घटक 15 अक्टूबर को भी पुतले फूंके सकते हैं।
पाक पीएम का 40 फीट पुतला फूंका
क्या था कारण- पाकिस्तान द्वारा नशा और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के चलते दशहरे पर पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ, आर्मी चीफ राहिल शरीफ व आतंकी मसूद अजहर के 40 फीट के पुतले अमृतसर के रणजीत एवन्यू में फूंका गया था। समागम में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी भी आए थे।
सीएम और मंत्री का पुतला जलाया
क्या था कारण- संगरूर में टेट पास बेरोजगार बीएड अध्यापक यूनियन का आरोप था कि पंजाब मंे 30 हजार से ज्यादा पद खाली हैं, जिन्हें भरा नहीं जा रहा है, इसी के विरोध में तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, शिक्षा मंत्री विजयइंदर सिंगला व खजाना मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के पुतले फूंके थे।
अंबानी और अडानी का पुतला फूंका
क्या था कारण- कृषि कानूनों से नाराज हो कर किसानों ने दशहरे पर सबसे बड़ा रोष प्रदर्शन अमृतसर में किया था। किसानों ने प्रधानमंत्री के साथ अंबानी व अडानी के पुतलों को दशहरे पर जलाया और कृषि कानून वापस लेने की मांग की। इस बार दशहरे के एक दिन बाद पुतला जलाने की तैयारी है।



