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अब क्या होगी कैप्टन की रणनीति:भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में होने की चर्चा; कृषि कानून रद्द करवाकर पंजाब में भाजपा का चेहरा बन सकते हैं

पंजाब के CM की कुर्सी से हटाए जाने की सूरत में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने की धमकी दे दी। पंजाब कांग्रेस के मौजूदा हालात को देख कैप्टन की रवानगी लगभग तय है। सियासी जानकारों की मानें तो कैप्टन के किरदार और उनके राजनीति करने के स्टाइल को देखते हुए इस बात की संभावना बेहद कम है कि वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। उनके कांग्रेस छोड़ने की सूरत में सबसे बड़ा रास्ता भारतीय जनता पार्टी की तरफ जाता है।

कैप्टन एक बार पहले कह भी चुके हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब कांग्रेस में नजरअंदाज किए जाने के कारण वे भाजपा में जाने के बारे में सोच रहे थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निकटता किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में यह भी चर्चा है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कैप्टन से संपर्क साधा है।

कैप्टन और BJP के एक-दूसरे पर दांव खेलने का यह सबसे मुफीद समय भी है। केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं। अकाली दल ने मंत्री पद छोड़ गठबंधन तक तोड़ा, लेकिन केंद्र ने कोई कदम नहीं उठाया। इससे उलट कैप्टन शुरु से किसानों के पक्ष में रहे हैं। वे हमेशा केंद्र पर किसानों को लेकर हमलावर रहे हैं। पंजाब में इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा कृषि सुधार कानून है। इसका विरोध ही पंजाब से शुरू हुआ था। अगर कैप्टन कानून रद्द करा दें तो फिर विरोधी कैप्टन के सियासी दबदबे के आगे टिक नहीं पाएंगे।

PM मोदी के करीबी कैप्टन कैप्टन अमरिंदर सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। वे जब भी दिल्ली जाते हैं तो उन्हें PM से मुलाकात का वक्त आसानी से मिल जाता है। इसके अलावा वे अक्सर मोदी के साथ गृहमंत्री शाह से भी मिलते रहते हैं। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि कैप्टन भाजपा की टॉप लीडरशिप से संपर्क कर BJP का दामन थाम सकते हैं।

सिद्धू को प्रधान बनाने के बाद से ही नाराज कैप्टन
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी प्रधान बनाने के बाद हाईकमान से नाराज चल रहे हैं। उन्होंने हाईकमान को भी नाराजगी बताई थी। इसके बावजूद उनकी बात नहीं सुनी गई। कैप्टन ने कहा कि सिद्धू उन पर लगाए आरोपों पर माफी मांगें, लेकिन इस पर भी बात नहीं बनी। इसके बाद पंजाब में सरकार और संगठन के तालमेल के बजाय आपसी मुकाबला शुरू हो गया। कैप्टन भी इसको लेकर अड़े रहे।

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