
जिस तरीके से प्रशासन ने इस बार मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए तामझाम कर रखे थे, उसके अनुरूप परिणाम नहीं आए हैं। लोगों ने इस बार विधानसभा चुनाव में पिछले चुनाव की अपेक्षा कम रूचि दिखाई है। पिछली बार 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान बदलाव की बयार लाते हुए 73.16 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था।
लेकिन इस बार हवा किसकी बह रहा है यह दिनभर दिशा बदलती रही और शाम को जब मतदान प्रतिशत देखने को मिला तो यह पिछली बार की अपेक्षा 10.26 प्रतिशत कम था। इस बार जिला जालंधर में 62.9 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। जब कि शेष ने कोई रूचि नहीं दिखाई और चुनाव की छुट्टी घर पर बैठकर मनाई।
इस बार सबसे ज्यादा मतदान आदमपुर विधानसभा क्षेत्र में हुआ है। यहां पर मुख्य रूप से टक्कर दोनों पूर्व बसपाईयों में थी। एक पवन टीनू अकाली दल की टिकट पर चुनाव लड़ रहा था जबकि दूसरा सुखविंदर कोटली कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरा था। यहां पर 67.53 प्रतिशत मतदान हुआ है। जबकि सबसे कम जालंधर सेंट्रल में लोगों ने मतदान में अपनी रूचि दिखाई । यहां पर सिर्फ 54 प्रतिशत मतदान हुआ। इस विधानसभा क्षेत्र में हालांकि आज पंगे सबसे ज्यादा हुए।
दूसरे नंबर पर आरक्षित विधानसभा क्षेत्र जालंधर वेस्ट रहा है। यहां पर 63.50 प्रतिशत मतदान हुआ। सबसे ज्यादा मत प्रतिशतता में फिल्लौर विधानसभा क्षेत्र तीसरे स्थान पर रहा है। यहां पर मतदान प्रतिशत 62 प्रतिशत से ज्यादा रहा है। सबसे ज्यादा मतदान में चौथा स्थान शाहकोट का है। यहां पर 61.70 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके बाद नकोदर में 61.60 प्रतिशत, जालंधर कैंट में 58.36 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि आरक्षित सीट करतारपुर में 59.80 प्रतिशत मतदान रहा।
पंजाब के 5 चुनाव का एनालिसिस:9% कम वोटिंग ने चौंकाया; बड़े बदलाव की संभावना कम; AAP-अकाली दल को झटका, 3 टर्म बाद मतदान 70% से नीचे
पंजाब विधानसभा की 117 सीटों के लिए मतदान खत्म हो गया। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात कम वोटिंग रही। 2017 में 77.2% के मुकाबले इस बार वोटिंग करीब 9% घटकर 68.3 रह गई। इसका सीधा संकेत यह माना जा रहा है कि पंजाब में बदलाव की संभावना ज्यादा नहीं है। ऐसे में इसी मुद्दे पर वोट मांग रही आम आदमी पार्टी (AAP) और एंटी इनकंबेंसी से जीत की आस में बैठे अकाली दल को झटका लगता दिख रहा है। हालांकि मालवा में बढ़ी वोटिंग से कांग्रेस को भी सीधा फायदा नहीं हो रहा।
वहीं राज्य में वोटिंग का ट्रेंड को देखें तो मतदान में कमी से यहां कांग्रेस की सरकार बनती रही है। वहीं अगर मतदान बढ़ता है तो अकाली दल सत्ता में आ जाता है। पंजाब के पिछले 5 विधानसभा चुनावों में मतदान का एनालिसिस किया तो यह ट्रेंड सामने आया।
कैसा रहा 1997 से 2017 तक का ट्रेंड
- 1997 में वोटिंग 68.7% रही तो पंजाब में अकाली दल-भाजपा की सरकार बनी थी।
- 2002 में वोटिंग कम होकर 62.14% रह गई। तब फिर कांग्रेस सत्ता में आ गई।
- 2007 में वोटिंग बढ़कर 76% हो गई। जिसके बाद अकाली दल की सत्ता में वापसी हुई।
- 2012 में सत्ता विरोधी लहर थी और वोटिंग बढ़कर 78.3% हो गई। जिसके बाद अकाली दल फिर सत्ता में आ गया।
- 2017 में वोटिंग फिर घटकर 77.2% हो गई तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में कांग्रेस सत्ता में आ गई।
- सपोर्ट को वोट में बदलने से चूकते दिखे AAP रणनीतिकार
पंजाब में आम आदमी पार्टी को खूब समर्थन मिल रहा था। गांवों में लोग खुलेआम आप को वोट देने की बात कह रहे थे। इसके बावजूद वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहा। इससे चर्चा है कि पंजाब में मिल रहे सपोर्ट को AAP के रणनीतिकार वोट में बदलने से चूक गए। अगर आप के समर्थन में इतनी लहर थी तो फिर वह वोटिंग में दिखना चाहिए था। खासकर, सत्ता विरोधी लहर या एंटी इनकंबेंसी में अक्सर वोटिंग बढ़ती है। हालांकि इस बार वोटिंग पिछली बार के मुकाबले काफी कम रह गई। - मालवा में AAP का जोर, दोआबा में चन्नी फैक्टर, माझा में कड़ा मुकाबला
रविवार को हुए मतदान 68.3% में पंजाब में स्थिति स्पष्ट नजर नहीं आ रही है। मालवा क्षेत्र में जिस तरीके से ज्यादा मतदान हुआ, उसे AAP के हक में माना जा रहा है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों में पिछली बार भी AAP को खूब समर्थन मिला था। वहीं दोआबा में कांग्रेस के पंजाब को दिए पहले SC मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी का फैक्टर दिखा। इसके अलावा माझा में कम वोट से कड़ा मुकाबला दिख रहा है, लेकिन मतदान ज्यादा न होने से यहां भी कांग्रेस फायदे में दिख रही है। -
- अकाली दल और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं।
- 2002 और 2017 की तरह इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस में नहीं हैं।
- पहली बार भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं।
- इस बार पंजाब के 22 किसान संगठन भी चुनाव मैदान में थे। ऐसे में ग्रामीण वोट बैंक पर इसका भी असर रहेगा।
- भाजपा को किसान आंदोलन की वजह से ग्रामीण सीटों पर विरोध झेलना पड़ा।
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शहर की चारों सीटों पर हुए मतदान के दौरान पंगे:कांग्रेसी, अकाली और आप कार्यकर्ता आपस में उलझे, सभी ने चुनाव के बाद एक दूसरे को देख लेने की दी धमकियां
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मतदान के दौरान आज जालंधर शहर के चारों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस, अकाली, और आप के उम्मीदवार आपस में उलझे। हालांकि कोई बड़ा पंगा तो नहीं हुआ लेकिन एक दूसरे के साथ धक्का मुक्की और छोटी-मोटी मारपीट जरूर हुई। जालंधर सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र में अकाली कांग्रेस और इसके बाद कांग्रेस का पंगा आम आदमी पार्टी के साथ हुआ।
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रैनक बाजार में पोलिंग को लेकर अकाली दल के कार्यकर्ताओं का आरोप था कि बेरी का एक पोलिंग एजेंट जो कि क्षेत्र में पार्षद भी है पोलिंग बूथ के बाहर से अपने साथ मतदाताओं को अंदर तक ले जा रहा था। जिसका उन्होंने विरोध किया। लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला कर दिया। हालांकि पुलिस यहां हल्का बल प्रयोग कर दोनों गुटों को खदेड़ना पड़ा। बाद में पुलिस ने बाजार में जो कुछ दुकानें या रेहड़ियां खुली थी वह भी बंद करवा दी। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के बूथों पर बैठे कार्यकर्ताओं को भी वहां से उठा दिया और कहा कि तीन से ज्यादा कार्यकर्ता किसी भी बूथ पर नहीं रहेंगे। बाजार से सारी भीड़ को खदेड़ कर स्थिति को नियंत्रण में किया।
कांग्रेस के कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी के सेंट्रल हलके से प्रत्याशी रमन अरोड़ा आपस में बहस करते हुए।अभी यह मामला सुलटा भी नहीं था कि कांग्रेस के कार्यकर्ता का वोट पोल करवाने के लेकर फिर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता से विवाद हो गया। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ने आरोप जड़ा कि कांग्रेस का पोलिंग एजेंट मतदाताओं को बाहर से ला रहा है और कान में आकर उन्हें कांग्रेस के पक्ष में मतदान के लिए कह रहा है। जबकि कांग्रेस के कार्यकर्ता का कहना था कि एसा कुछ नहीं है। बल्कि मामला यह था कि जिस व्यक्ति को पोलिंग एजेंट बनाया गया था वह यहां का वोटर नहीं था। चुनाव आयोग की हिदायतों के अनुसार एजेंट वही बन सकता है जिसका उस पोलिंग बूथ पर वोट हो। उन्होंने उसकी शिकायत की थी जिसका अब गुस्सा उतार रहे हैं। इस अवसर पर सेंट्रल हलके के आप प्रत्याशी रमन अरोड़ा भी पहुंचे हुए। आपस में हुई गरमागरम बहस को मौके पर पुलिस वालों ने बीच में पड़कर शांत करवाया और उन्हें पोलिंग बूथ से दूर ले गए।
इसी तरह से सुबह पहाला झगड़ा नार्थ विधानसभा क्षेत्र के किला मोहल्ला में हुआ। यहां पर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और कांग्रेस के कार्यकर्ता आपस में उलझ गए थे। लेकिन बीच बचाव करते हुए मामला शांत करवाया गया। इसी तरह से जालंधर कैंट विधानसभा क्षेत्र में परगट सिंह एवं आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। दोनों गुटों के वहां पर केंद्रीय बलों व पुलिस के मुलाजिमों ने अलग-अलग किया। जालंधर वेस्ट में भी आप और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की आपस में बहसबाजी तो हुई लेकिन मामला बड़ों के बीच में पड़ने के बाद शांत हो गया।
सभी ने कहां चुनाव के बाद देखेंगे
मतदान के दौरान जहां-जहां पर भी आग पंगे हुए सभी जगह राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने चुनाव के बाद एक दूसरे को देख लेने की धमकियां दी। जालंधर सेंट्रल में अकाली दल के कार्यकर्ताओं ने शाम को चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से निपटने की धमकियां दी। इसी तरह से जालंधर कैंट में चुनाव की मतपेटियां पोलिंग केंद्रों से रवाना होने के बाद पंगे की आशंका है। यहां पर भी आप और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को धमकियां दी हैं।



