अमृतसरचंडीगढ़जालंधरपंजाबपटियालाराष्ट्रीयलुधियानाहोशियारपुर

अमृतसर में सिद्धू खेमें की निगाहें अब मेयर करमजीत सिंह की कुर्सी पर, सदन में बहुमत के बिना बदलना आसान नहीं

अमृतसर में नगर सुधार ट्रस्ट की चेयरमैनशिप से दिनेश बस्सी को उतारने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू खेमे की निगाहें अब मेयर करमजीत सिंह रिंटू की कुर्सी पर हैं। हालांकि निगम सदन में बहुमत के बिना उन्हें बदलना आसान नहीं है। इससे भी बड़ी रुकावट आपसी सहमति की है।

नगर सुधार ट्रस्ट की चेयरमैनशिप से दिनेश बस्सी को उतारने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू खेमे की निगाहें अब मेयर करमजीत सिंह रिंटू की कुर्सी पर हैं। हालांकि निगम सदन में बहुमत के बिना उन्हें बदलना आसान नहीं है। इससे भी बड़ी रुकावट आपसी सहमति की है। अब शहर में तीन बड़े पावर सेंटर बन गए हैं। सिद्धू के अलावा विधायक ओमप्रकाश सोनी उपमुख्यमंत्री और डा. राजकुमार वेरका कैबिनेट मंत्री बन गए हैं। ऐसे में अगर मेयर हटाओ अभियान भी चलता है तो इन सभी का प्रयास रहेगा कि उनका करीबी सीनियर पार्षद ही मेयर बने। इन सभी पावर सेंटरों को मेयर रिंटू कैसे मैनेज करते हैं, अब यह उनके लिए परीक्षा की तरह है। अगर वह सफल रहते हैं तो सरकार रहने तक उनकी कुर्सी बची रहेगी। फिलहाल पार्षदों की लामबंदी कैसे होगी और वे एक मंच पर कैसे आएंगे, इसको लेकर हर कोई अपने-अपने कयास लगा रहा है।

देनी पड़ी सियासी शहादत

दिनेश बस्सी को नगर सुधार ट्रस्ट के चेयरमैन के पद से हटाने की कवायद की कहानी भी कुछ कम नहीं है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के जाते ही पहले बस्सी पर खुद ही चेयरमैनी छोड़ने का दबाव बनाया गया, ताकि वह इस्तीफा दे दें। अपने सियासी आकाओं और अपनी टीम के साथ काफी सोच विचार के बाद बस्सी ने ऐसा करने से मना कर दिया। जब कांग्रेसी गलियारे में इसकी चर्चा छिड़ी तो टकसाली कांग्रेस नेताओं की भी यही सोच थी कि सरेंडर करने से तो शहीद होना अच्छा है। अगर इस्तीफा दे देते तो माना जाता कि उन्होंने सरेंडर कर दिया है, लेकिन अगर उन्हें हटाया जाता है तो यह सियासी शहादत होगी। इसका लाभ भविष्य की सियासत में मिल सकता है। इतना ही नहीं इससे लोगों की सहानुभूति अलग से मिलेगी, जो चुनाव में काम आएगी। वैसे भी दिनेश बस्सी की राजनीति शुरू से ही संघर्ष भरी रही है।

काली डायरी में छिपे कई राज

आजकल किसी भी विभाग में बिना कमीशन के काम नहीं होता। शहर की एक अहम विकास एजेंसी है। इस पर शहर के विकास की काफी जिम्मेदारी है। वहां की अफसरशाही और घालमेल अकसर सुर्खियां बनते रहते हैैं। खास बात यह है कि हर विकास के काम या टेंडर के लिए किसको कितने फीसद कमीशन गई, कब गई, कितने बजे गई, इसे नोट करने के लिए एक काले रंग की डायरी लगाई हुई थी। ट्रस्ट में हुए फेरबदल के बाद यह डायरी एक आरटीआइ कार्यकर्ता के हाथ लग गई है। वह एक पार्टी का पूर्व जिला प्रधान भी रहा है। अब डायरी जनाब के हाथ लगने के बाद अधिकारियों के हाथ पैर फूले हुए हैं। वे यह पता करने में जुटे हुए हैं कि कोड वर्ड में लिखी गई बातें उन्हें समझ लगी या नहीं। अगर लग गईं तो कई लोगों की पोल खुलेगी और अगर नहीं लगी तो बचाव रहेगा।

काम न आई बुलारिया की यारी

विधानसभा हलका दक्षिणी से तीन बार के विधायक इंद्रबीर सिंह बुलारिया पिछले काफी समय से सुर्खियों में हैं। पहले वह कैप्टन और सिद्धू के विवाद में सिद्धू खेमे में चट्टान की तरह खड़े होने के लिए चर्चा में रहे और फिर लिटिल चैंप कांटेस्ट के लिए। मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल के साथ ही बुलारिया को भी उम्मीद थी कि कैप्टन-सिद्धू विवाद में उन्होंने जिस तरह सिद्धू के साथ वफादारी निभाई है, उसका उन्हें इनाम जरूर मिलेगा। उन्होंने कैबिनेट में जगह पाने के लिए चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक जोर भी बहुत लगाया, पर सिद्धू से यारी उनके काम नहीं आई। आखिर यह बाजी सिद्धू के खास यार परगट सिंह मार ले गए। कांग्रेसी गलियारों में ही चर्चा बनी हुई है कि विवाद में अगर शहर में सबसे पहले सिद्धू के साथ कोई खड़ा हुआ था तो वो बुलारिया ही थे, जब उनकी सुनवाई नहीं हुई तो बाकी क्या उम्मीद लगाएं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page