
जालंधर : भारत 15 अगस्त 2023 को अपनी आजादी का 77वां वर्ष मनाएगा।यह दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के सदियों के संघर्ष, बलिदान और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अथक प्रयास किए।
देशवासी स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए तिरंगा और अन्य आजादी के प्रतीक खरीद रहे हैं, लेकिन उन बच्चों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता, जो महानगरों की सड़क किनारे तिरंगा बेच रहे हैं। हर साल शहर के बच्चे इन दिनों शहर के चौक-चौराहों पर तिरंगा बेचते दिख जाते हैं, लेकिन इन्हें नहीं पता कि लोग ये झंडा क्यों खरीदते हैं? इन्हें ये भी नहीं पता कि स्वतंत्रता दिवस होता क्या है? ये मासूम केवल पेट की खातिर तिरंगा बेचते हैं।
स्वतंत्रता दिवस नजदीक आते ही लोगों में देशभक्ति की भावना हिलोरे लेने लगती हैं।स्वतंत्रता दिवस,गणतंत्र दिवस के मौके पर जिन बच्चों को स्कूल या मोहल्ले में होने वाले देशभक्ति समारोह में ध्वजारोहण के मौके पर मौजूद रहना है, उनमें से कई बच्चों के लिए फुटपाथ या चौक चौराहों पर तिरंगा झंडा बेचना मजबूरी है। इन बच्चों के आर्थिक हालात इस कदर बिगड़े हैं कि स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस सहित हर तीज त्योहार के मौके चार पैसे कमाने के अवसर देते हैं।दिन भर सड़क पर धूल खाते, बेशुमार वाहनों की भागमभाग से बचते हुए ज्यादा से ज्यादा झंडे बेचने के लिए ये बच्चे हर आने जाने वाले शख्स से झंडा खरीदने की गुहार लगा रहे है। अगर कोई एक झंडा खरीदने आता तो एक और खरीदने की प्रार्थना करते है। दिन भर की मेहनत के बाद महज दस-बीस रुपए का नोट मिलने की खुशी क्या होती है? यह सवाल कोई इन बच्चों से पूछे ?
ब्रकछाप चौक,कपूरथला चौक,फुटवाल चौक,नकोदर चौक,गुरू नानक मिशन चौक के पास तिरंगा बेच रही सात-आठ-दस साल की प्रिया,ममता,सुल्तान कहती है कि तिरंगा क्या होता है, उसे नहीं पता। उसे बस इतना मालूम है कि इसे बेचने से उसे पैसे मिलेंगे, जिसे वह अपने मां-बापू को देती है। चौराहे के पास भाई-बहनों के साथ तिरंगा बेच रही कोमल ने कहा कि उसे तिरंगे के रंगों से प्यार है, लेकिन उसे नहीं पता कि इसका क्या महत्व है? उसे केवल इतना पता है कि इसे बेचकर वह अपने लिए खाने का इंतजाम कर सकती है।
राष्ट्रीय ध्वज सदैव गौरव, देशभक्ति और अपनेपन का प्रतीक रहा है। चाहे वह आज़ादी से पहले का युग हो या आज़ादी के बाद का, दुनिया भर में सभी भारतीयों द्वारा एक निर्धारित मर्यादा का पालन किया गया है। इसमें भारत के जवानों की भावनाएं एक विशेष भावना रखती हैं और ‘जय हिंद’ का स्वर पूरे देश में एक कंपन पैदा करता है जिससे हर भारतीय गौरवान्वित होता है।
स्वतंत्रता दिवस आते ही लोग अपने घरों, कार्यालयों और यहां तक कि अपनी कारों पर फहराने के लिए राष्ट्रीय ध्वज की तलाश शुरू कर देते हैं।
“लेकिन क्या लोग इन झंडों को देशभक्ति के कारण खरीद रहे हैं या इन बच्चों पर दया के कारण?
जब ट्रैफिक लाइट लाल हो जाती है और सभी वाहन रुक जाते हैं, तो ये बच्चे हाथों में छोटे झंडे लहराते हुए कारों और ऑटो की ओर दौड़ पड़ते हैं। इन बच्चों को यह भी नहीं पता कि वे क्या बेच रहे हैं। उनके लिए, यह केसरिया, हरी और सफेद धारियों वाला कागज का एक मात्र टुकड़ा है जो दिन के अंत में उनके लिए पैसा लाएगा।
सरकार आंगनबाड़ियों के माध्यम से वंचित बच्चों के लिए बहुत कुछ कर रही है लेकिन बच्चे अभी भी सड़कों पर भीख मांग रहे हैं। राष्ट्रीय ध्वज बेचना उनके लिए जल्द पैसा कमाने के बराबर है। उनके माता-पिता आश्रय में बैठे हैं और वे अपने बच्चों को केवल भावनात्मक भागफल के लिए भेजते हैं। यह उन लोगों से पैसे ऐंठने का एक और तरीका बन गया है जो राष्ट्रीय ध्वज या वंचित बच्चों को देखकर भावुक हो जाते हैं।
लोग आम तौर पर यह कहकर प्रतिक्रिया देते हैं कि यह बच्चों के लिए आय का एक स्रोत है और हमें उन्हें राष्ट्रीय ध्वज बेचना जारी रखना चाहिए। तो क्या अब हम इस तथ्य को स्थापित कर रहे हैं कि बच्चों द्वारा भीख मांगना आय का एक वैध और स्वीकार्य स्रोत है और हमें देश में भिखारियों की बढ़ती संख्या को प्रोत्साहित करना जारी रखना चाहिए।
“अगर हम चाहते हैं कि ये बच्चे राष्ट्र की संपत्ति बनें, तो इन बच्चों की बेहतरी के लिए भावनात्मक भावनाओं पर अंकुश लगाना होगा।”