
20% प्रतिशत दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में दलितों के बड़े हिस्से का समर्थन बसपा को मिला और पार्टी की प्रमुख मायावती चार बार मुख्यमंत्री बनीं लेकिन दलितों की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य पंजाब में पार्टी अपना आधार नहीं खड़ा कर सकी। 2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में दलित समुदाय की आबादी 32% है।
पंजाब बसपा की नींव रखने वाले कांशीराम का गृह राज्य भी है। लेकिन बावजूद इसके बसपा यहां वह करिश्मा नहीं कर सकी जैसा उसने उत्तर प्रदेश में किया। आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब में बसपा का वोट प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है। ऐसा विधानसभा चुनाव में भी हुआ है और लोकसभा चुनाव में भी। 1998 से अब तक बसपा पंजाब में लोकसभा की एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई है।
Punjab BSP: 1992 में जीती थी 9 सीटें
आज तक बसपा का पंजाब में सबसे बेहतर प्रदर्शन 1992 में रहा। तब पार्टी ने यहां विधानसभा की 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन अगले साल ही 1997 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी सिर्फ एक सीट पर आकर रुक गई थी।
बसपा की हालत पंजाब में इतनी खराब है कि साल 2002 से 2017 तक हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी पंजाब में एक भी सीट नहीं जीत सकी बल्कि पार्टी का वोट प्रतिशत भी बुरी तरह गिर गया। 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 5.69% वोट मिले थे जो 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 1.77% रह गए।
2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया था लेकिन इससे भी बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ और वह चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी।
लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो पार्टी को 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में उसने एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी। 1996 के लोकसभा चुनाव में उसे तीन सीटों पर जीत मिली थी जबकि 1998 से उसका आंकड़ा शून्य से आगे नहीं बढ़ सका है।
2019 Punjab Lok Sabha Chunav: बुरी तरह गिरा वोट शेयर
1991 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को पंजाब में 19.71% वोट मिले थे जो 2019 में सिर्फ 3.49% रह गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने पंजाब में कई दलों के साथ मिलकर पंजाब डेमोक्रेटिक एलायंस बनाया था लेकिन उसे कोई सीट नहीं मिली।
2019 में बसपा को आनंदपुर साहिब में 1.4 लाख, होशियारपुर में 1.28 लाख और जालंधर में 2 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी यह तीन लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर बसपा पंजाब में बाकी राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ने की हैसियत रखती है। इन तीनों सीटों पर बसपा के उम्मीदवार अगर 2019 की ही तरह वोट ले आए तो बाकी दलों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी को आनंदपुर साहिब सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।
कई बार हो चुकी है बसपा में टूट
सवाल यह है कि आखिर बसपा पंजाब में अपना मजबूत संगठन क्यों नहीं खड़ा कर सकी। बसपा प्रमुख मायावती पर इस बात का आरोप लगता है कि उन्होंने हमेशा उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित किया और पंजाब को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी उन्हें देनी चाहिए थी। इसके अलावा पंजाब में बसपा में कई बार टूट भी हो चुकी है। पंजाब में बसपा से अलग होकर बसपा अंबेडकर, बहुजन समाज क्रांति पार्टी और बहुजन समाज मोर्चा जैसी पार्टियों का गठन हो चुका है। इन दलों को बनाने वाले नेता चूंकि बसपा से ही निकले तो इसका सीधा असर बसपा के संगठन पर पड़ा।
2024 Punjab Lok Sabha Chunav: इस बार अकेले लड़ रही बसपा
2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा ने ऐलान किया कि वह लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरेगी। पार्टी ने आरोप लगाया कि शिरोमणि अकाली दल बीजेपी के संपर्क में है और उसका बीजेपी के साथ गठबंधन हो सकता है।
बताना होगा कि पंजाब में बीजेपी और अकाली दल लंबे वक्त तक गठबंधन में रहे थे लेकिन साल 2020 में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के चलते अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था और हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
क्योंकि इस बार पंजाब में बीजेपी शिरोमणि अकाली दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में राज्य में कई सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला हो सकता है।