
मोर्चरी में बिना टैग लगाए रखी गई थी लाश
एक दिन पहले अन्य परिवार ने कर दिया था संस्कार, वीरवार को असली परिवार पहुंचा तो हुआ खुलासा…
सिविल अस्पताल में वीरवार को बड़ी लापरवाही सामने आई। मोर्चरी में रखा शव ही बदल गया। शव किसी का था और बुधवार को संस्कार किसी अन्य परिवार की ओर से कर दिया गया। वीरवार को जब असली परिवार शव लेने पहुंचा तो उसे शव मिला ही नहीं। इसके बाद गुस्साए परिवार के करीब 150 लोगों ने सिविल अस्पताल में जमकर तोड़फोड़ की। अस्पताल की इमरजेंसी, ट्रॉमा वाॅर्ड, माइनर ओटी, ओपीडी, अस्पताल प्रशासन अधिकारियों के दफ्तर तक को तोड़ दिया गया।
भीड़ को उग्र हुआ देखकर मुलाजिम व अपना इलाज करवाने आए लोग वहां से भाग निकले। तोड़फोड़ के दौरान आधा दर्जन के करीब अस्पताल कर्मचारी बुरी तरह से जख्मी हो गए। देखते ही देखते अस्पताल पुलिस छावनी में बदल गया। पुलिस ने तोड़फोड़ करने वाले लोगों को समझा कर वहां से हटाया। वहीं जिस शव का पोस्टमार्टम करवाकर अंतिम संस्कार किया गया अब उसके असली परिवार के लोग अस्थियां विसर्जन व बाकी के क्रिया कर्म करने के बाद ही जांच में शामिल होने की बात कह रहे हैं। इस विवाद के चलते रोजाना 1500 मरीजों की ओपीडी वाले अस्पताल में लोगों का इलाज नहीं हो पाया। ये घटना सुबह 9.30 बजे हुई। 10 घंटे बाद शाम 7.00 बजे दोबारा इमरजेंसी में डाॅक्टरों ने इलाज करना शुरू किया।
ऐसे हुआ विवाद- इमरजेंसी, ट्राॅमा सेंटर, एसएमओ के कमरे में दरवाजे, कुर्सियां तोड़ीं
गुस्साए लोगों ने पहले मोर्चरी पर धावा बोला। वहां मौजूद कर्मचारियों ने सारी जानकारी इमरजेंसी में होने की बात कही। इसके बाद गुस्साए लोग मोर्चरी से इमरजेंसी में पहुंचे और तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी। इस दौरान स्टाफ नर्स पलविंदर कौर बुरी तरह से जख्मी हो गईं। फिर ट्रॉमा वार्ड में हुड़दंग मचाया। अस्पताल के मुलाजिमों ने मदर एंड चाइल्ड केयर वाली बिल्डिंग की पहली मंजिल पर जाकर अपना बचाव किया। इसके बाद भीड़ एमसीएच बिल्डिंग में जा पहुंची जहां पर उन्होंने एसएमओ के कमरे में बुरी तरह से तोड़फोड़ की। वहां पर गमले टेबल शीशे सहित अन्य सामान को तोड़ दिया गया। इस मारपीट में अस्पताल की स्टाफ नर्स पलविंदर कौर सहित दर्जा चार कर्मचारी नीलू, भूषण, सनी, भगवती व एक अन्य कर्मचारी बुरी तरह से घायल हुआ है।
ये हुई गलतियां- परिवार पहचान में चूका, स्टाफ भी रहा लापरवाह
शव को मोर्चरी में रखने से पहले उस पर एक टैग लगाना अनिवार्य होता है। उक्त टैग पर मरने वाले का नाम, उम्र, पिता का नाम व पता लिखा होता है। लेकिन सिविल अस्पताल में ये टैग नहीं लगाया गया था।
मृतक आयुष की प्राइवेट अस्पताल में मौत हुई थी। शव को किसी दूसरे अस्पताल में रखवाने से पहले निजी अस्पताल ने टैग नहीं लगाया।प्राइवेट अस्पताल से आए शव को सिविल अस्पताल में भी बिना टैग लगाया रखा गया।पोस्टमार्टम से पहले परिवार के 2 लोगों से पहचान करवाई गई उन्होंने भी पहचान करने में चूक की।पोस्टमार्टम के दौरान डॉक्टर, फार्मासिस्ट व दर्जा चार कर्मचारियों को मृतक का टैग या फिर उसकी शिनाख्त पुख्ता करनी चाहिए थी।अंतिम संस्कार से पहले क्रिया कर्म के दौरान भी परिवार के लोगों ने पहचान नहीं की।
-हतिंदर कौर, सिविल सर्जन : शव के बदले जाने का मामला काफी गंभीर है। इस मामले में गलती करने वाले डॉक्टर या कर्मचारियों के बारे में जांच करवाई जा रही है। मृतक के परिवार वालों ने अस्पताल में तोड़फोड़ की है जो कि निंदनीय है। पुलिस अपने तौर पर जांच कर रही है। हमने भी शिकायत दर्ज करवाई है।