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चतुर्महायोग के साथ गणेश चतुर्थी 19 सितंबर आज : गणपति स्थापना के 2 ही मुहूर्त, मंगलवार को वैसे ही दुर्लभ संयोग जो गणेश जन्म के समय थे

पुराणों के मुताबिक गणेश जी का जन्म भादौ की चतुर्थी को दिन के दूसरे प्रहर में हुआ था। उस दिन स्वाति नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त था। ऐसा ही संयोग 19 सितंबर को बन रहा है। इन्हीं तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग में मध्याह्न यानी दोपहर में जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है, तब देवी पार्वती ने गणपति की मूर्ति बनाई और उसमें शिवजी ने प्राण डाले थे।इस बार गणेश स्थापना पर मंगलवार का संयोग बन रहा है। विद्वानों का कहना है कि इस योग में गणपति के विघ्नेश्वर रूप की पूजा करने से इच्छित फल मिलता है। गणेश स्थापना पर शश, गजकेसरी, अमला और पराक्रम नाम के राजयोग मिलकर चतुर्महायोग बना रहे हैं।

इस दिन स्थापना के साथ ही पूजा के लिए दिनभर में सिर्फ दो मुहूर्त रहेंगे। वैसे तो दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है।

गणेश स्थापना और पूजा न कर पाएं तो क्या करें…

पूरे गणेशोत्सव में हर दिन ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जाप करने से भी पुण्य मिलता है। सुबह नहाने के बाद गणेशजी का मंत्र पढ़कर प्रणाम कर के ऑफिस-दुकान या किसी भी काम के लिए निकलना चाहिए।

गणेश जी की मूर्ति से जुड़ी जरूरी बातें

1. गंगा या किसी भी पवित्र नदी की मिट्टी के साथ शमी या पीपल के जड़ की मिट्टी से मूर्ति बना सकते हैं। जहां से भी मिट्‌टी लें, वहां ऊपर से चार अंगुल हटाकर, अंदर की मिट्टी इस्तेमाल करें।

2. मिट्टी के अलावा गाय के गोबर, सुपारी, सफेद मदार की जड़, नारियल, हल्दी, चांदी, पीतल, तांबा और स्फटिक से बनी मूर्तियों की भी स्थापना कर सकते हैं।

3. मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। इसमें भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश के अंश होने से ये पंचतत्वों से बनी होती है। देवी पार्वती ने भी मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिव जी ने उसमें प्राण डाले। वो ही गणेश बने।

4. घर में हथेली भर के गणेशजी स्थापित करने चाहिए। ग्रंथों के माप के मुताबिक मूर्ति 12 अंगुल यानी तकरीबन 7 से 9 इंच तक की हो। इससे ऊंची घर में नहीं होनी चाहिए। मंदिरों और पंडालों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। बैठे हुए गणेश घर में और खड़े गणपति ऑफिस, दुकान, कारखानों के लिए शुभ होते हैं।

5. पूर्व, उत्तर या ईशान कोण में ( उत्तर-पूर्व के बीच ) मूर्ति रखें। ब्रह्म स्थान यानी घर के बीच में खाली जगह पर भी स्थापना कर सकते हैं। बेडरूम में, सीढ़ियों के नीचे और बाथरुम के नजदीक मूर्ति स्थापना न करें।

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