
UP और उत्तराखंड में कांवड़ रूट पर दुकानदारों को अपने नाम की तख्ती लगाने के फरमान जारी हुए। इस पर जमकर हो-हल्ला हुआ। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया। फिलहाल सरकारी आदेश पर रोक लगा दी गई। इन सबके बीच कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू हो गई।
हरिद्वार में पिछले साल करीब 4 करोड़ कांवड़िए पहुंचे थे। कांवड़ बाजार में दुकानदारों और काम करने वालों से बात की। एक बड़ी बात निकलकर आई कि कांवड़ बनाने के कारोबार में 80 फीसदी मुस्लिम हैं। उनका कहना है- आदेश बनाना और लागू करना सरकार का काम है। हमारे 3 महीने तो भोले को समर्पित हैं।
हरिद्वार में चमगादड़ टापू और पंतदीप पार्किंग में बड़ा कांवड़ बाजार सजा है। हजारों की संख्या में मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, दिल्ली और अलग-अलग जगह से इस व्यापार से जुड़े लोग पहुंचे हैं। हर साल पंतदीप पार्किंग में ही कांवड़ मेले का बाजार सजाया जाता है।
ये वह बाजार है, जहां कांवड़ बनाई और सजाई जाती है। शिव भक्त हरिद्वार पहुंचने के बाद सबसे पहले यहीं पहुंचते हैं, अपने लिए कांवड़ पसंद करते हैं। फिर उसे सजाते हैं। यहां आपको 500 से लेकर 30000 रुपए तक की कांवड़ मिल जाएगी। इसके अलावा कांवड़ बनाने का काम ज्वालापुर और बैरागी कैंप में भी किया जाता है।इस कांवड़ बाजार में 100 से ज्यादा दुकानें हैं। व्यापारियों को जिला प्रशासन ठेके पर दुकानें देता है। एक दुकान का किराया 60 से लेकर 80 हजार तक है। यहां कांवड़ बनाने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। ये 20 से 40 साल से कांवड़ कारोबार से जुड़े हैं, जो 6 महीने पहले ही कांवड़ बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं।नजीबाबाद के रहने वाले जाहिद पिछले 40 साल से कांवड़ के व्यापार से जुड़े हैं। नजीबाबाद से रॉ मैटेरियल (बांस की लकड़ी) लाकर हरिद्वार कांवड़ मेले में बेचते हैं। इनसे कांवड़ यात्री और दुकानदार सामान खरीदते हैं।
जाहिद बताते हैं- यह हमारा खानदानी काम है। पहले यह बाजार हरिद्वार शहर में लगता था, लेकिन भीड़ के कारण अब पंतदीप पार्किंग में लगाया जाता है। हमने यहां ठेके पर जमीन ली है। पिछले 40 साल से कांवड़ मेले के दौरान कोई दिक्कत नहीं हुई। मैं मुस्लिम हूं, लेकिन शिव भक्त बड़े प्रेम से आकर मुझसे बात करते हैं। बांस और लकड़ी खरीदते हैं।जब उनसे यह पूछा गया कि सरकार ने होटल और ढाबों में नेमप्लेट लगाने का ऑर्डर दिया है? जाहिद कहते हैं- यह सरकार का काम है। सरकार को जो अच्छा लगता है, करती है। हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कांवड़ मेले में कोई हमसे आकर नहीं पूछता कि आप किस समुदाय से हैं।
इम्तियाज और शमशेर कांवड़ के बेहतरीन कारीगर
इम्तियाज अहमद और शमशेर बिहार से आकर यहां काम कर रहे हैं। इनका काम बांस-बल्ली काटकर कांवड़ का ढांचा तैयार करना है। इनकी बनाई हर कांवड़ बेहद खूबसूरत है। इम्तियाज को वैसे तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन उन्हें यहां की व्यवस्थाओं से बहुत परेशानी है। वे कहते हैं- शौचालय नहीं है, पीने का पानी नहीं है। आसपास भी आप देख लो, कितनी गंदगी है। मक्खी-मच्छर बहुत परेशान करते हैं, जिससे रात को हम सो भी नहीं पाते।इम्तियाज अहमद, फैजल के यहां काम करते हैं। फैजल ने ठेके पर कांवड़ मेले में दुकान ली है। यह उनका खानदानी काम है। फैजल सिर्फ कांवड़ बनाने का ही काम नहीं करते, दशहरा पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले भी बनाते हैं।
फैजल आगे कांवड़ का काम करना नहीं चाहते
फैजल के यहां 10 से 15 मजदूर कांवड़ बनाते हैं। सभी मुस्लिम हैं। पिछले 5-6 साल से फैजल यहां कांवड़ बनाने का काम कर रहे हैं। उनसे पहले उनके बड़े भाई यही काम करते थे। फैजल इस बार मायूस थे। पूछने पर उन्होंने कहा कि आगे यह काम करने का मन नहीं। हमने पूछा क्यों, तो फैजल ने कहा- पहले ऐसा नहीं होता था, जो इस बार हो रहा है। कुछ ऐसा भी हुआ, जिसे हम नहीं बता सकते हैं। पूछने पर भी उन्होंने कुछ नहीं बताया।फैजल कहते हैं- शिव भक्त (भोले) हमारे लिए भी वैसे ही हैं, जैसे हिंदुओं के लिए। हम उनसे उतनी ही मोहब्बत करते हैं जितनी कि आप। हम तो 3 महीने पूरी तरह से भोले को समर्पित कर देते हैं। मकान और प्लॉट किराए पर लेकर कांवड़ का काम करते हैं। कुछ ऐसे भी भोले के भक्त होते हैं, जो हमें 2-3 महीने पहले फोन करके कांवड़ तैयार करने का ऑर्डर देते हैं।
शिव भक्तों को कोई आपत्ति नहीं
कांवड़ यात्रा में पहुंचे हजारों शिव भक्त भी इन्हीं लोगों से कांवड़ खरीदते हैं। किसी भी कांवड़ यात्री को कोई आपत्ति नहीं है कि कांवड़ तैयार करने वाला मुस्लिम है। सामने खड़े होकर शिव भक्त मुस्लिम लोगों से ही भगवान शिव की मूर्ति तैयार करवाते हैं। भक्तों का कहना है कि यह तो भाईचारे का संदेश है कि एक मुस्लिम कांवड़ बना रहा है और एक हिंदू शिव भक्त उसे खरीद कर ले जा रहा है। यहां किसी में कोई भेदभाव नहीं है।